हरियाणवी लोक साहित्य | Haryanvi Folklore | Haryanvi Folk Literature

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साहित्य

 
 
यहाँ हरियाणवी लोक साहित्य से संबंधित सामग्री रहेगी व आप हरियाणवी लोक साहित्य पढ़ पाएंगे। हरियाणवी लोक-साहित्य नि:संदेह अत्याधिक समृद्ध लोक-साहित्यों में से एक है किंतु विलुप्त होते लोक-साहित्य को सुरक्षित रख पाना वर्तमान के लिए एक अहम् मुद्दा है। हरियाणवी लोक-साहित्य में ऐसी अनेक विधाएं हैं जिन्हें सहेज कर रखने की आवश्यकता है। लोक-साहित्य पन्ना इन्हीं लुप्तप्राय: हरियाणवी विधाओं को जीवंत बनाए रखने का प्रयास मात्र है। यदि आप हरियाणवी लेखक, कवि, पत्रकार, साहित्यकार या हरियाणवी में रुचि रखने वाले पाठक हैं तो यह पन्ना आपके लिए ही बनाया गया है। कृपया हरियाणवी लोक-साहित्य से संबंधित सामग्री भेज कर इस साहित्यिक-यज्ञ में योगदान दें। आप हरियाणवी रागनियां, लोकोक्तियाँ, ग्रामोक्तियाँ, लोकगीत, लोकगाथा, लोककथा एवं कथोक्ति, आल्हा,भजन सांग और लेख भेज सकते हैं।
 
Literature Under This Category
 
गाँधी पर हरयाणवी लोकगीत | Mhara Haryana  - म्हारा हरियाणा संकलन
हरियाणवी लोक मानस पर पड़े राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रभाव की झलक इस प्रदेश के लोक गीतों में पूरी तरह मिलती है जो यहां के भोले-भाले बच्चों ने गाए हैं और जिन के माध्यम से इस प्रदेश की नारियों ने पूज्य बापू के प्रति अपनी भावनाएं अभिव्यक्त की हैं। बच्चों द्वारा गाए जाने वाले लोक गीतों में भले तुकबदियां ही हैं परंतु इन तुकबंदियों में भी बड़े सीधे सादे सरल ढंग से बापू के विभिन्न कार्यों की विशद चर्चा हुई है। इन गीतों में महात्मा गांधी के सभी राजनैतिक तथा समाज सुधार संबंधी कार्य क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिला है। गांधी जी के जलसे में शामिल होने की नारियों उत्सुकता से नारियों की जागरूकता का संकेत भी मिलता है। हरियाणवी लोक गीतों द्वारा प्रस्तुत किए गए बापू जी की मृत्यु के करुण दृश्य से सभी की आखें सजल हो उठती हैं। एक गीत की निम्न पंक्तियां अपनी अमिट छाप छोड़ देती है: 

काचा कुणबा छोड़ के बाब्बू सुरग लोक में सोगे।
भारत के सब नर नारी अब बिना बाप के होगे॥

 
हरियाणवी लोक गीतों में गाँधी | लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
देस के हो रे थे बारां बाट।
बणिया, बाह्मण अर कोई जाट

 
फ़ौज मै जाकै भूल ना जाइए  - मेहर सिंह
फ़ौज मै जाकै भूल ना जाइए तू अपनी प्रेमकौर नै ।

 
गूठी | हरियाणवी कहानी  - आशा खत्री 'लता' | Asha Khatri 'Lata'
कुंतल नै पैहरण का बहोत शौक था। टूमा तैं लगाव तो लुगाइयां नै सदा तैं ए रहा सै। अर उनमैं भी गूठी खास मन भावै, क्यूंके परिणयसूत्र में बंधण की रस्मा की शुरुआत ए गूठी तैं होवे सै। यो ए कारण सै अक गूठी के साथ एक भावनात्मक रिश्ता बण ज्या सै। कुंतल की गैलां भी न्युएं हुआ। ब्याह नै साल भर हो ग्या था फेर भी वा अपनी सगाई आली गूठी सारी हाणां आंगली मैं पहरे रहती। चूल्हा- चौका, खेत-क्यार हर जगह उसनै जाणा होता। गोसे पाथण तैं ले कै भैसां तैं चारा डालण ताहीं बल्कि खेतां मैं तै लयाण ताहीं के सारे काम उसनै करणै पड़ै थे। यो ए कारण था अक उसकी सास ने उसतैं कई बार समझाया भी के छोटी सी गूठी, आंगली तैं कढक़ै कितै पड़ ज्यागी। पर कुंतल सास की बात नै काना पर कै तार देती। बस कदे- कदाए उसनै चून ओसणणां पड़ता तै उतार कै एक ओड़ा नै धर देती और हाथ धोते एं फेर पहर लेती।

 
पं लखमीचंद की रागणियां  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
रागनी एक कौरवी लोकगीत विधा है जो आज स्वतंत्र लोकगीत विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हरियाणा में मनोरंजन के लिए गाए जाने वाले गीतों में रागनी प्रमुख है। यहां रागनी एक स्वतंत्र व लोकप्रिय लोकगीत विधा के रूप में प्रसिद्ध है। हरियाणा में रागनी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं व सामान्य मनोरंजन हेतु रागनियां अहम् हैं। हरियाणा की रागनियों की चर्चा हो तो पं लखमीचंद का मान सर्वोपरि लिया जाता है। प्रस्तुत हैं पं लखमीचंद की रागनिया।

 
ऊंची एडी बूंट बिलाती | लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन

 
मैं तो गोरी-गोरी नार | लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
मैं तो गोरी-गोरी नार, बालम काला-काला री!
मेरे जेठा की बरिये, सासड़ के खाया था री?

 
सावन के हरियाणवी गीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
सावन मास हरियाणवी लोक-संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सावन मास में तीज का त्योहार हरियाणा में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।

 
आया तीजां का त्योहार | सावन के हरियाणवी लोक-गीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
आया तीजां का त्योहार
आज मेरा बीरा आवैगा

सामण में बादल छाए
सखियां नै झूले पाए
मैं कर लूं मौज बहार
आज मेरा बीरा आवैगा

 
हरणे नै भारत का कलेस | गाँधी लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
हरणे नै भारत का कलेस।
गांधी नै योह् दिया उपदेस॥

 
मेहर सिंह की रागणियां  - मेहर सिंह
मेहर सिंह की रागणियां हरियाणा में बहुत लोकप्रिय हैं और देहात में बड़े चाव से सुनी जाती हैं। एक फ़ौजी होने के कारण उनकी रचनाओं में फ़ौज के जीवन, युद्ध इत्यादि का उल्लेख स्वभाविक है। 

 
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या  - पं मांगे राम
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या,
तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

तेरह दिन की अलग छठी बैठी सूं
मेरा होगया कम तोल घटी बैठी सूं
सब कार व्योवाहर तै दूर हटी बैठी सूं
तनै धन चाहिए मैं लुटी-पिटी बैठी सूं
तेरी माँ का जाया चाणचक मरग्या !!१!!
तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

रही मन की मन म्ह खोलण बी ना पाई,
बण कै बोडिया ड़ोलन
बी ना पाई,
ले कै पंखा झोलण
बी ना पाई
मरती बरियाँ बोलण
बी ना पाई
मैं पिया बिन तड़पुं वो परलोक डिगरग्या !!२!!
तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

अपणे माणस नै गैर करया ना करते
छोटी सी बात का जहर करया ना करते
दुश्मन पै कदे खैर करया ना करते
नाबलिग़ पै कदे फैर करया ना करते
तेरी बातां नै सुण कै हृदय चिरग्या !!३!!
तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

श्री मांगेराम तेरा सस्ता गाणा कोन्या
म्हारे बसते घर म्ह कोए याणा-स्याणा कोन्या
मेरे दो पैरां नै ठयोड़ ठिकाणा कोन्या
जैमल सै तेरा पूत बिराना कोन्या,
जैमल सै नादान तेरे तै डरग्या !!४!!

 
मांगेराम की रागणी | तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या  - पं मांगे राम
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या,
तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

13 दिन की अलग छठी बैठी सूं
मेरा होगया कम तोल घटी बैठी सूं
सब कार व्योवाहर तै दूर हटी बैठी सूं
तनै धन चाहिए मैं लुटी-पिटी बैठी सूं
तेरी माँ का जाया चाणचक मरग्या !!१!!
तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

रही मन की मन म्ह खोलण भी ना पायी,
बण कै बोडिया ड़ोलन भी ना पायी,
ले कै पंखा झोलण भी ना पायी
मरती बरियाँ बोलण भी ना पायी
मैं पिया बिन तड़पुं वो परलोक डिगरग्या !!२!!
तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

अपणे माणस नै गैर करया ना करते
छोटी सी बात का जहर करया ना करते
दुश्मन पै कदे खैर करया ना करते
नाबलिग़ पै कदे फैर करया ना करते
तेरी बातां नै सुण कै हृदय चिरग्या !!३!!
तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!!

श्री मांगेराम तेरा सस्ता गाणा कोन्या
म्हारे बसते घर म्ह कोए याणा-स्याणा कोन्या
मेरे दो पैरां नै ठयोड़ ठिकाणा कोन्या
जैमल सै तेरा पूत बिराना कोन्या,
जैमल सै नादान तेरे तै डरग्या !!४!!

 
कलियुग | रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा ।
वेदव्यास जी कळूकाल* का हाल लिखण लागे सारा ॥ टेक ॥

एक बाप के नौ-नौ बेटे, ना पेट भरण पावैगा -
बीर-मरद हों न्यारे-न्यारे, इसा बखत आवैगा ।
घर-घर में होंगे पंचायती, कौन किसनै समझावैगा -
मनुष्य-मात्र का धर्म छोड़-कै, धन जोड़ा चाहवैगा ।

कड़ कै न्यौळी बांध मरैंगे, मांग्या मिलै ना उधारा* ॥1॥
वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा ।

लोभ के कारण बल घट ज्यांगे*, पाप की जीत रहैगी -
भाई-भाण का चलै मुकदमा, बिगड़ी नीत रहैगी ।
कोए मिलै ना यार जगत मैं, ना सच्ची प्रीत रहैगी -
भाई नै भाई मारैगा, ना कुल की रीत रहैगी ।

बीर नौकरी करया करैंगी, फिर भी नहीं गुजारा ॥2॥
वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा ।

सारे कै प्रकाश कळू का, ना कच्चा घर पावैगा* -
वेद शास्त्र उपनिषदां नै ना जाणनियां पावैगा ।
गौ लोप हो ज्यांगी दुनियां में, ना पाळनियां पावैगा -
मदिरा-मास नशे का सेवन, इसा बखत आवैगा ।

संध्या-तर्पण हवन छूट ज्यां, और वस्तु* जांगी बाराह ॥3॥
वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा ।

कहै लखमीचंद छत्रापण* जा-गा, नीच का राज रहैगा -
हीजड़े मिनिस्टर बण्या करैंगे, बीर कै ताज रहैगा ।
दखलंदाजी और रिश्वतखोरी सब बे-अंदाज रहैगा -
भाई नै तै भाई मारैगा, ना न्याय-इलाज रहैगा ।

बीर उघाड़ै सिर हांडैंगी, जिन-पै दल खप-गे थे अठाराह* ॥4॥
वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा ।


कळूकाल = कलियुग

कड़ कै न्यौळी बांध मरैंगे, मांग्या मिलै ना उधारा = लोग कमर में या जेब में पैसा बांधे रखेंगे, फिर भी मांगने पर या उधार में पैसा नहीं मिलेगा ।

लोभ के कारण बल घट ज्यांगे = घी-दूध आदि महंगा हो जायेगा, लोग लोभ में आकर इसे खरीद नहीं पायेंगे और उनका शारीरिक बल घटता जायेगा ।

सारे कै प्रकाश कळू का, ना कच्चा घर पावैगा = कलियुग में सब जगह (बिजली का) उजाला रहेगा और सब मकान पक्के होंगे ।

वस्तु जांगी बाराह = सोना, चांदी, तांबा आदि बारह धातु (वस्तु) गायब हो जायेंगी ।

छत्रापण जा-गा = क्षत्रियपन मिट जायेगा

जिन-पै दल खप-गे थेअठाराह = द्रोपदी के चीरहरण के कारण महाभारत हुआ था जिसमें कुल 18 सेनाऐं खत्म हो गईं थीं (कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी और पांडवों के पास 7) ।

 
नांनी नांनी बूंदियां | सावन के हरियाणवी लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलणा
एक झूला डाला मैंने बाबल के राज में
                       बाबल के राज में

संग की सहेली हे सावन का मेरा झूलणा
नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलना
ए झूला डाला मैंने भैया के राज में
                    भैया के राज में

गोद भतीजा हे सावन का मेरा झूलना
नांनी नांनी बूंदियां हे सावन का मेरा झूलना

 
परीक्षित और कलियुग | रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
कहते हैं कि युधिष्ठिर के पोते परीक्षित के बाद कलियुग आरंभ हो गया था । प्रस्तुत है परीक्षित और कलियुग की बातचीत (दादा लखमीचंद की वाणी से)

कलियुग बोल्या परीक्षित ताहीं, मेरा ओसरा आया ।
अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया॥

सोने कै काई ला दूंगा, आंच साच पै कर दूंगा -
वेद-शास्त्र उपनिषदां नै मैं सतयुग खातिर धर दूंगा ।
असली माणस छोडूं कोन्या, सारे गुंडे भर दूंगा -
साच बोलणियां माणस की मैं रे-रे-माटी कर दूंगा ।

धड़ तैं सीस कतर दूंगा, मेरे सिर पै छत्र-छाया ।
अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया ॥

मेरे राज मैं मौज करैंगे ठग डाकू चोर लुटेरे -
ले-कै दें ना, कर-कै खां ना, ऐसे सेवक मेरे ।
सही माणस कदे ना पावै, कर दूं ऊजड़-डेरे -
पापी माणस की अर्थी पै जावैंगे फूल बिखेरे ॥

ऐसे चक्कर चालैं मेरे मैं कर दूं मन का चाहया ।
अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया ॥

 
नांनी नांनी बूंदियां मीयां | सावन के हरियाणवी लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
नांनी नांनी बूंदियां मीयां बरसता हे जी
हां जी काहे चारूं दिसां पड़ेगी फुवार
हां जी काहे सामण आया सुगड़ सुहावणा
संग की सहेली मां मेरी झूलती जी
हमने झूलण का हे मां मेरी चाव जी
हां जी काहे सामण आया सुगड़ सुहावणा
सखी सहेली मां मेरी भाजगी जी
हां जी काहे हम तै तो भाज्या ना जाय
पग की है पायल उलझी दूब में जी
नांनी नांनी बूंदियां मीयां बरसता जी
हां जी काहे चारूं पास्यां पड़ेगी फुवार

 
सुणों कहाणी हरियाणे की  - पं मांगे राम
हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की।
कई किस्म की हवा चालगी नई चाल की ।

 
पं मांगेराम की रागणियां  - पं मांगे राम
पं मांगे राम का नाम हरियाणवी लोक साहित्य में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। पं लखमीचंद के इस शिष्य की रागणियां हरियाणा भर में बड़े चाव से आज भी गाई जाती हैं।

 
या दुनिया  - म्हारा हरियाणा संकलन
एक ब एक बूढ़ा सा माणस अर उसका छोरा दूसरे गाम जाण लागरे थे। सवारी वास्तै एक खच्चर ह था। दोनो खच्चर पै सवार होकै चाल पड़े। रास्ते मैं कुछ लोग देख कै बोल्ले, "रै माड़ा खच्चर अर दो-दो सवारी। हे राम, जानवर की जान की तो कोई कीमत नहीं समझदे लोग।"

 
कच्चे नीम्ब की निम्बोली | सावन के हरियाणवी लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
कच्चे नीम्ब की निम्बोली सामण कद कद आवै रे
जीओ रे मेरी मां का जाया गाडे भर भर ल्यावै रे
बाबा दूर मत ब्याहियो दादी नहीं बुलाने की
बाब्बू दूर मत ब्याहियो अम्मा नहीं बुलाने की
मौसा दूर मत ब्याहियो मौसी नहीं बुलाने की
फूफा दूर मत ब्याहियो बूआ नहीं बुलाने की
भैया दूर मत ब्याहियो भाभी नहीं बुलाने की
काच्चे नीम्ब की निम्बोली सामणया कद आवै रे
जीओ रे मेरी मां का जाया गाडे भर भय ल्यावै रे

 
जन्म-मरण | रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए ।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥टेक॥

 
लेणा एक ना देणे दो  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
लेणा एक ना देणे दो, दिलदार बणे हांडै सैं।
मन म्हं घुण्डी रहै पाप की, यार बणें हांडै सै ।।
नई-नई यारी लगै प्यारी, दोष पाछले ढक ले।
मतलब खात्यर यार बणैं, फेर थोड़े दिन म्हं छिक ले।
नहीं जाणते फर्ज यार का, पाप कर्म म्हं पक ले।
कै तै खा ज्यां माल यार का, या बहू बाहण नै तक ले।
करै बहाना यारी का, इसे यार बणें हांडै सैं।।

 
देखे मर्द नकारे हों सैं  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं।
भीड़ पड़ी म्हं न्यारे हों सैं तज के दीन ईमान नैं ।।

 
होली खेल रहे शिव शंकर | होली का गीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग
गौरा पार्वती के संग माता पार्वती के संग।
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग....

कुटी छोड़ शिव शंकर चल दिये लियो नादिया संग
गले में रूण्डो की माला, सर्प लिपट रहे अंग।
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग....

मनियों खा गये आक धतुरा धड़यों पी गए भंग
एक सेर गांजे को पीकर हुए नशे में दंग।
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग....

कामिनी होली खेल रही है देवर जेठ के संग
रघुवर होली खेल रहे है सीता जी के संग।
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग....

राजा इन्द्र ने होली खेली इन्द्राणी के संग
राधे होली खेल रही है श्री कृष्ण के संग।
होली खेल रहे शिव शंकर गौरा पार्वती के संग....

 
जब साजन ही परदेस गये मस्ताना फागण क्यूँ आया  - म्हारा हरियाणा संकलन
जब साजन ही परदेस गये मस्ताना फागण क्यूँ आया
जब सारा फागण बीत गया तैं घर में साजन क्यूँ आया

छम छम नाचैं सब नर नारी मैं बैठी दुखा की मारी
मेरे मन में जब अंधेरा मचा तैं चान्द का चांदण क्यूँ आया

इब पीया आया जी खित्याना जब जी आया पी मित्याना
साजन बिन जोबन क्यूँ आया जोबन बिन साजन क्यूँ आया

मन की तै अर्थी बंधी पड़ी आख्या मैं लागी हाय झड़ी
जब फूल मेरे मन का सूक्या लजमार फागण क्यूँ आया


साभार - हरियाणा के लोकगीत

 
फागण के दिन चार री सजनी  - म्हारा हरियाणा संकलन
फागण के दिन चार री सजनी, फागण के दिन चार ।
मध जोबन आया फागण मैं
फागण बी आया जोबन मैं
झाल  उठे सैं मेरे मन मैं
जिनका बार न पार री सजनी, फागण के दिन चार ।

प्यार का चन्दन महकन लाग्या
गात का जोबन लचकन लाग्या
मस्ताना मन बहकन लाग्या
प्यार करण नै तैयार री सजनी, फागण के दिन चार ।

गाओ गीत मस्ती मैं भर के
जी जाओ सारी मर मर के
नाचन लागो छम छम कर के
उठन दो झंकार री सजनी, फागण के दिन चार ।

चन्दा पोंहचा आन सिखिर' मैं
हिरणी जा पोंहची अम्बर मैं
सूनी सेज पड़ी सै घर मैं
साजन करे तकरार री सजनी,
फागण के दिन चार ।

 
हो पिया भीड़ पड़ी मै | हरयाणवी रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की, खास दवाई हो,
मेल मैं टोटा के हो सै।

 
एक चिड़िया के दो बच्चे थे | हरयाणवी रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए!
मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!!

 
मत चालै मेरी गेल | हरयाणवी रागणी  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा 
मैं निर्धन कंगाल तनैं परिवार चाहिएगा

 
झूलण आल़ी | लोकगीत  - म्हारा हरियाणा संकलन
झूलण आल़ी बोल बता के बोलण का टोटा
झूलण खातर घाल्या करैं सैं पींग सामण में
मीठी बोली तेरी सै जणो कोयल जामण में
तेरे दामण में लिसकार उठै चमक रिहा घोटा
झूलण आल़ी बोल बता के बोलण का टोटा
लरज लरज कै जावै से योह जामण की डाली
पड़ के नाड़ तुडा लै तैं रोवै तन्नै जामण आली
तेरे ढुंगे पै लटकै काला नाग सा मोटा
झूलण आल़ी बोल बता के बोलण का टोटा
मोटी मोटी अंखियां के माह डोरा स्याही का
के के गुण मैं कहूं तेरी इस नरम कलाई का
चन्द्रमा सा मुखड़ा तेरा जणों नूर का लोटा
झूलण आल़ी बोल बता के बोलण का टोटा

 
जीवन की रेल  - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand
हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥टेक॥

 
फागुण के हरियाणवी लोक गीत | Fagun Geet  - म्हारा हरियाणा संकलन
यहाँ फागुण से संबंधित लोकगीत संकलित किए गए हैं जो फागुण, फाग व होली के अवसर पर गाए जाते हैं। यदि आपके पास भी कुछ गीत उपलब्ध हों तो अवश्य 'म्हारा-हरियाणा' से साझा करें।

 
गया बख्त आवै कोन्या  - मंदीप कंवल भुरटाना
गया बख्त आवै कोन्या, ना रहरे माणस श्याणे
पहल्म बरगा प्यार रहया ना, इब होरे दूर ठिकाणे॥

 
मेरी कुर्ती | रागनी  - नरेश कुमार शर्मा
हे मेरी कुर्ती का रंग लाल मेरा बालम देख लूभावै सै। |टेक|
हे सै मेरा जोबन याणा।
मेरे संग होरया धिंगताणा।
उमरिया हो रही सोलह साल मेरा बालम देख लूभावै सै।

मैं जब ओड पहर कै चालु।
मै बडबेरी ज्यु हालु।
हे मन भीड़ी हो ज्या गाल मेरा बालम देख लूभावै सै।

हे मेरा रूप निखरता आवै।
जवानी दूणा जोर दिखावै।
हे मेरी बदल गई है चाल मेरा बालम देख लूभावै सै।

हे नरेश इश्क में भरग्या।
वो नजर मेरे पै धरग्या।
हे वो हुआ पड़ा सै घायल मेरा बालम देख लूभावै सै।

 

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