Mhara Haryana - Haryanvi literature, culture and language
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Literature Under This Category | ||||
फ़ौज मै जाकै भूल ना जाइए - मेहर सिंह | ||||
फ़ौज मै जाकै भूल ना जाइए तू अपनी प्रेमकौर नै । | ||||
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पं लखमीचंद की रागणियां - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
रागनी एक कौरवी लोकगीत विधा है जो आज स्वतंत्र लोकगीत विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हरियाणा में मनोरंजन के लिए गाए जाने वाले गीतों में रागनी प्रमुख है। यहां रागनी एक स्वतंत्र व लोकप्रिय लोकगीत विधा के रूप में प्रसिद्ध है। हरियाणा में रागनी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं व सामान्य मनोरंजन हेतु रागनियां अहम् हैं। हरियाणा की रागनियों की चर्चा हो तो पं लखमीचंद का मान सर्वोपरि लिया जाता है। प्रस्तुत हैं पं लखमीचंद की रागनिया। |
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मेहर सिंह की रागणियां - मेहर सिंह | ||||
मेहर सिंह की रागणियां हरियाणा में बहुत लोकप्रिय हैं और देहात में बड़े चाव से सुनी जाती हैं। एक फ़ौजी होने के कारण उनकी रचनाओं में फ़ौज के जीवन, युद्ध इत्यादि का उल्लेख स्वभाविक है। | ||||
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तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या - पं मांगे राम | ||||
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या, तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! तेरह दिन की अलग छठी बैठी सूं मेरा होगया कम तोल घटी बैठी सूं सब कार व्योवाहर तै दूर हटी बैठी सूं तनै धन चाहिए मैं लुटी-पिटी बैठी सूं तेरी माँ का जाया चाणचक मरग्या !!१!! तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! रही मन की मन म्ह खोलण बी ना पाई, बण कै बोडिया ड़ोलन बी ना पाई, ले कै पंखा झोलण बी ना पाई मरती बरियाँ बोलण बी ना पाई मैं पिया बिन तड़पुं वो परलोक डिगरग्या !!२!! तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! अपणे माणस नै गैर करया ना करते छोटी सी बात का जहर करया ना करते दुश्मन पै कदे खैर करया ना करते नाबलिग़ पै कदे फैर करया ना करते तेरी बातां नै सुण कै हृदय चिरग्या !!३!! तनै वचन भरे थे, तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! श्री मांगेराम तेरा सस्ता गाणा कोन्या म्हारे बसते घर म्ह कोए याणा-स्याणा कोन्या मेरे दो पैरां नै ठयोड़ ठिकाणा कोन्या जैमल सै तेरा पूत बिराना कोन्या, जैमल सै नादान तेरे तै डरग्या !!४!! |
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मांगेराम की रागणी | तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या - पं मांगे राम | ||||
तेरा बड़ा भाई तेरे भरोसे करग्या, तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! 13 दिन की अलग छठी बैठी सूं मेरा होगया कम तोल घटी बैठी सूं सब कार व्योवाहर तै दूर हटी बैठी सूं तनै धन चाहिए मैं लुटी-पिटी बैठी सूं तेरी माँ का जाया चाणचक मरग्या !!१!! तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! रही मन की मन म्ह खोलण भी ना पायी, बण कै बोडिया ड़ोलन भी ना पायी, ले कै पंखा झोलण भी ना पायी मरती बरियाँ बोलण भी ना पायी मैं पिया बिन तड़पुं वो परलोक डिगरग्या !!२!! तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! अपणे माणस नै गैर करया ना करते छोटी सी बात का जहर करया ना करते दुश्मन पै कदे खैर करया ना करते नाबलिग़ पै कदे फैर करया ना करते तेरी बातां नै सुण कै हृदय चिरग्या !!३!! तनै वचन भरे थे,तू इसा तावला फिरग्या !!टेक!! श्री मांगेराम तेरा सस्ता गाणा कोन्या म्हारे बसते घर म्ह कोए याणा-स्याणा कोन्या मेरे दो पैरां नै ठयोड़ ठिकाणा कोन्या जैमल सै तेरा पूत बिराना कोन्या, जैमल सै नादान तेरे तै डरग्या !!४!! |
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कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
समद ऋषि जी ज्ञानी हो-गे जिसनै वेद विचारा । वेदव्यास जी कळूकाल* का हाल लिखण लागे सारा ॥ टेक ॥ एक बाप के नौ-नौ बेटे, ना पेट भरण पावैगा - बीर-मरद हों न्यारे-न्यारे, इसा बखत आवैगा । घर-घर में होंगे पंचायती, कौन किसनै समझावैगा - मनुष्य-मात्र का धर्म छोड़-कै, धन जोड़ा चाहवैगा । कड़ कै न्यौळी बांध मरैंगे, मांग्या मिलै ना उधारा* ॥1॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा । लोभ के कारण बल घट ज्यांगे*, पाप की जीत रहैगी - भाई-भाण का चलै मुकदमा, बिगड़ी नीत रहैगी । कोए मिलै ना यार जगत मैं, ना सच्ची प्रीत रहैगी - भाई नै भाई मारैगा, ना कुल की रीत रहैगी । बीर नौकरी करया करैंगी, फिर भी नहीं गुजारा ॥2॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा । सारे कै प्रकाश कळू का, ना कच्चा घर पावैगा* - वेद शास्त्र उपनिषदां नै ना जाणनियां पावैगा । गौ लोप हो ज्यांगी दुनियां में, ना पाळनियां पावैगा - मदिरा-मास नशे का सेवन, इसा बखत आवैगा । संध्या-तर्पण हवन छूट ज्यां, और वस्तु* जांगी बाराह ॥3॥ वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा । कहै लखमीचंद छत्रापण* जा-गा, नीच का राज रहैगा - हीजड़े मिनिस्टर बण्या करैंगे, बीर कै ताज रहैगा । दखलंदाजी और रिश्वतखोरी सब बे-अंदाज रहैगा - भाई नै तै भाई मारैगा, ना न्याय-इलाज रहैगा । बीर उघाड़ै सिर हांडैंगी, जिन-पै दल खप-गे थे अठाराह* ॥4॥वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लागे सारा । कळूकाल = कलियुग कड़ कै न्यौळी बांध मरैंगे, मांग्या मिलै ना उधारा = लोग कमर में या जेब में पैसा बांधे रखेंगे, फिर भी मांगने पर या उधार में पैसा नहीं मिलेगा । लोभ के कारण बल घट ज्यांगे = घी-दूध आदि महंगा हो जायेगा, लोग लोभ में आकर इसे खरीद नहीं पायेंगे और उनका शारीरिक बल घटता जायेगा । सारे कै प्रकाश कळू का, ना कच्चा घर पावैगा = कलियुग में सब जगह (बिजली का) उजाला रहेगा और सब मकान पक्के होंगे । वस्तु जांगी बाराह = सोना, चांदी, तांबा आदि बारह धातु (वस्तु) गायब हो जायेंगी । छत्रापण जा-गा = क्षत्रियपन मिट जायेगा जिन-पै दल खप-गे थेअठाराह = द्रोपदी के चीरहरण के कारण महाभारत हुआ था जिसमें कुल 18 सेनाऐं खत्म हो गईं थीं (कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी और पांडवों के पास 7) । |
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परीक्षित और कलियुग | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
कहते हैं कि युधिष्ठिर के पोते परीक्षित के बाद कलियुग आरंभ हो गया था । प्रस्तुत है परीक्षित और कलियुग की बातचीत (दादा लखमीचंद की वाणी से) कलियुग बोल्या परीक्षित ताहीं, मेरा ओसरा आया । अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया॥ सोने कै काई ला दूंगा, आंच साच पै कर दूंगा - वेद-शास्त्र उपनिषदां नै मैं सतयुग खातिर धर दूंगा । असली माणस छोडूं कोन्या, सारे गुंडे भर दूंगा - साच बोलणियां माणस की मैं रे-रे-माटी कर दूंगा । धड़ तैं सीस कतर दूंगा, मेरे सिर पै छत्र-छाया । अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया ॥ मेरे राज मैं मौज करैंगे ठग डाकू चोर लुटेरे - ले-कै दें ना, कर-कै खां ना, ऐसे सेवक मेरे । सही माणस कदे ना पावै, कर दूं ऊजड़-डेरे - पापी माणस की अर्थी पै जावैंगे फूल बिखेरे ॥ ऐसे चक्कर चालैं मेरे मैं कर दूं मन का चाहया । अपने रहण की खातिर मन्नै इसा गजट बणाया ॥ |
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सुणों कहाणी हरियाणे की - पं मांगे राम | ||||
हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की। कई किस्म की हवा चालगी नई चाल की । |
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पं मांगेराम की रागणियां - पं मांगे राम | ||||
पं मांगे राम का नाम हरियाणवी लोक साहित्य में एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। पं लखमीचंद के इस शिष्य की रागणियां हरियाणा भर में बड़े चाव से आज भी गाई जाती हैं। | ||||
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जन्म-मरण | रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए । नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥टेक॥ |
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लेणा एक ना देणे दो - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
लेणा एक ना देणे दो, दिलदार बणे हांडै सैं। मन म्हं घुण्डी रहै पाप की, यार बणें हांडै सै ।। नई-नई यारी लगै प्यारी, दोष पाछले ढक ले। मतलब खात्यर यार बणैं, फेर थोड़े दिन म्हं छिक ले। नहीं जाणते फर्ज यार का, पाप कर्म म्हं पक ले। कै तै खा ज्यां माल यार का, या बहू बाहण नै तक ले। करै बहाना यारी का, इसे यार बणें हांडै सैं।। |
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देखे मर्द नकारे हों सैं - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
देखे मर्द नकारे हों सैं गरज-गरज के प्यारे हों सैं। भीड़ पड़ी म्हं न्यारे हों सैं तज के दीन ईमान नैं ।। |
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हो पिया भीड़ पड़ी मै | हरयाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
हो पिया भीड़ पड़ी मैं नार मर्द की, खास दवाई हो, मेल मैं टोटा के हो सै। |
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एक चिड़िया के दो बच्चे थे | हरयाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
एक चिड़िया के दो बच्चे थे, वे दूजी चीड़ी ने मार दिए! मैं मर गयी तो मेरे बच्चों ने मत ना दुःख भरतार दिए!! |
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मत चालै मेरी गेल | हरयाणवी रागणी - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
मत चालै मेरी गेल तनै घरबार चाहिएगा मैं निर्धन कंगाल तनैं परिवार चाहिएगा |
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जीवन की रेल - पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand | ||||
हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी । छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥टेक॥ |
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गया बख्त आवै कोन्या - मंदीप कंवल भुरटाना | ||||
गया बख्त आवै कोन्या, ना रहरे माणस श्याणे पहल्म बरगा प्यार रहया ना, इब होरे दूर ठिकाणे॥ |
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मेरी कुर्ती | रागनी - नरेश कुमार शर्मा | ||||
हे मेरी कुर्ती का रंग लाल मेरा बालम देख लूभावै सै। |टेक| हे सै मेरा जोबन याणा। मेरे संग होरया धिंगताणा। उमरिया हो रही सोलह साल मेरा बालम देख लूभावै सै। मैं जब ओड पहर कै चालु। मै बडबेरी ज्यु हालु। हे मन भीड़ी हो ज्या गाल मेरा बालम देख लूभावै सै। हे मेरा रूप निखरता आवै। जवानी दूणा जोर दिखावै। हे मेरी बदल गई है चाल मेरा बालम देख लूभावै सै। हे नरेश इश्क में भरग्या। वो नजर मेरे पै धरग्या। हे वो हुआ पड़ा सै घायल मेरा बालम देख लूभावै सै। |
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