Mhara Haryana - Haryanvi literature, culture and language
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चूल्हा वो माटी-गार का सीली बॉल छणया करती धोरै धरया रहता एक पलॅवा गुलगुले, पूड़े, कदे राबड़ी माँ ने एक सताया करता सारे भाइयों का कट्ठा परोसा राम की थाली, लछमण का टूक माँ जब लाकड़ी सहलाया करती बाबू भी तो उड़ै खाया करता चाहे घर हो, चाहे हो गमीणे की तैयारी चूल्हे की आग जब फड़फड़ाया करती पर उसनै कदे कराई जग-हंसाई ना भाईयाँ मैं तैं सारे-ए तो पढ़गे खुशियाँ मैं बंडवारा बंड़ग्या चूल्हे की कायां झरण लाग गी फेर एक दिन घराँ छोरा आया बोल्या, माँ क्यूँ धूम्में मैं आँख फुड़ानै सै, थारै ख़ातर यू लोह का चूल्हा ल्याया, धूम्मैं तै पाण्डा छुटाओ माँ नै, ना था उसका बेरया मेरे मन की बात छिपै कोन्या इसनै ठाये-ठाये कित हांडूंगी फूक देगा सुवाहली, अर कॉची राखैगा राबड़ी छोरे, जै मेरा सुख चाहवै सै, तो बताइये साच कहूँ सूँ बेटा, मैं फूल्ली नही समाऊँगी छोरा ना मान्या, जूल्म करग्या माँ के दुःखदे गोड्डे छत पै चढ़ते नही बूढ़ी उम्मीद इब गोबर और गॉरा ल्यावै सै जब भी बरसै सै मींह, चूल्हा खुले मैं भीजै सै - जगबीर राठी |
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