वो गाम पुराणे कडै़ गये | नरेन्द्र गुलिया का गीत
वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

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नरेन्द्र गुलिया | Narendra Gulia

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वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये
वो पहल्यां आली बात नहीं, सुखधाम पुराणे कडै़ गये
वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये !

झूल हुलारे मारया करती, वो चढ़ता सामण आज नहीं
पनघट की रौणक खत्म हुई, वो कुड़ता-दामण आज नहीं
कोई सुणने लायक बात नहीं, वा बड्डे स्याणै कडै़ गये
वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये


बैलां की छमछम, रैहट की दमदम, वा जल मै उठते साज नहीं
ताता-ताता गुड़ काते थे, वो चलते कोल्हू आज नहीं
वो चरखे चाक्की, आज नहीं वो खील मखाणे कड़ै गये
वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये


फलसी ऊपर झूल्या करते, वो खोट लगाता जाट नहीं|
वो बांस की गाडी आज नहीं, वे सीखां आले छाज नहीं
वो लोहे की दवात नहीं, तख्ती-बस्ते जाणे कड़ै गये
वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये!


सांझी होली, तीज सलोणा, मस्ती का फागण आज नहीं
जाट मेहर सिंह, मांगे भजनी, वो लखमी बामण आज नहीं
'गुलिया' मै भी वा बात नहीं, वो मीठ्ठे गाणे कड़ै गये
वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये!


- नरेन्द्र गुलिया

[ साभार- रोला एल्बम, नरेन्द्र गुलिया, इन्द्रवेश योगी]

 

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