मुर्रा नस्ल की भैंस | कविता | Haryanvi poem by Sandeep Kanwal
वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

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संदीप कंवल भुरटाना

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म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै।
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

मुर्रा नस्ल की भैंस म्हारी बाल्टा दूध का ठोकै सै,
म्हारे गाबरू इस दूध नै किलो-किलो झौके सै,
खल-बिनौला गैल्या, खावै काजू-बदाम सै
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

ढाई लाख की झौटी बेच के कर दिया कमाल,
गरीब किसान था भाइयो इब होग्या मालामाल,
जमींदार खातर या भैंस, सोने की खान सैै।
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

पाणी का दूध बिकै शहर म्हं हालात माडे़ होरे सैं,
समोसे बरगी छोरी सै औडे, सिगरेट बरगे छोरे सैं,
घणे पतले होरे सैं वें, गोड्या म्हं उनके जान सै,
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

चलाके मोटर भैंस नुवांवा, भाई तारा कमाल सै,
संदीप कंवल भुरटाणे आला, राखै देखभाल सै,
म्हारी खारकी झोटी पै पूरे गाम नै मान सै।
म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै।
मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।।

- संदीप कंवल भुरटाना

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