झूठा माणस मटक रह्या सै | हरियाणवी ग़ज़ल | Haryanvi Ghazal by Risal Jangra
जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

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रिसाल जांगड़ा

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झूठा माणस मटक रह्या सै,
सूली पै सच लटक रह्या सै ।

जिसनै मैहणत करी बराबर,
काम उसे का अटक रह्या सै ।

सौरण मिरग कैं पाछै देखो,
राम आज बी भटक रह्या सै ।

ऊठ बैठ सै गैरां के संग,
दिल म्हं अपणा खटक रह्या सै ।

भाग किसे नैं गोद खिल्यावै,
ठाकै किसे नैं पटक रह्या सै ।

कऴजुग म्हं बेटा बापू का,
हाथ पकड़ कैं झटक रहया सै ।

दिल का इब नाजुक सा सिस्सा,
बात-बात म्हं चटक रह्या सै।

जो बी मिलै 'रिसाल' आज काल्ह
जी भर पी कै सटक रह्या सै।

- रिसाल जांगड़ा
  साभार - माट्टी के दीवे (हरियाणवी ग़ज़लें)

 

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