Mhara Haryana - Haryanvi literature, culture and language
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कोये ना कोये बात सै ।
खड़ी धूप मैं बाल सँवारूँ-काग मँडेरै बोलै
चिडी रेत मैं मलमल न्हावै-फुदकै भरै उडारी
रात चाँदनी जब जाकर मैं खटिया पर अलसाई
मेरी हथेली पडी खुजावै आवैगा मनीयाडर
अंग अंग फड़के सै मेरा-रात सावणी आई
पीहर मैं जी लागै कोन्या -बालम याद सतावै
बिल्ली मेरी कार काटगी ना जाऊँ मैं पाणी
- श्रीकृष्ण गोतान 'मंज़र' |
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