बाट | श्रीकृष्ण गोतान 'मंज़र' का हरियाणवी गीत
जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

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श्रीकृष्ण गोतान मंजर | Shrikrishna Gotan Manjar

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कोये ना कोये बात सै ।
मेरी मायड़ जी हुलसावै।।

खड़ी धूप मैं बाल सँवारूँ-काग मँडेरै बोलै
किसकी याद दुवावै बैरी-कुण आवै जी डोलै
करै क्यूँ उत्पात सै -1

चिडी रेत मैं मलमल न्हावै-फुदकै भरै उडारी
श्याम घटा में बिजली चमकै-चालै परवा प्यारी

आवण नैं बरसात सै -2

रात चाँदनी जब जाकर मैं खटिया पर अलसाई
कदे छुपै कदे लिकडै चन्दा कर रहा आँख मिचाई

लगावै बैरी घात सै -3

मेरी हथेली पडी खुजावै आवैगा मनीयाडर
बढ़िया सी पहरूँ मैं साडी लग्या सुनहरी बाडर

गठीला मेरा गात सै - 4

अंग अंग फड़के सै मेरा-रात सावणी आई
घरआला छुट्टी आवण नैं-जब घालैगा भाई,

होवण नैं मुलाकात सै -5

पीहर मैं जी लागै कोन्या -बालम याद सतावै
मरया डाकिया कई दिनां सैं चिट्ठी भी ना ल्यावै
उचाटी दिन रात सै -6

बिल्ली मेरी कार काटगी ना जाऊँ मैं पाणी
सिरीकिशन जी चालै मेरा ल्यादे न गुड़धाणी

मन्नै वो बूरा भात सै -7

- श्रीकृष्ण गोतान 'मंज़र'

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