हरियाणवी ग़ज़ल | सतपाल स्नेही | Haryanvi Ghazal by Satpal Snehi
जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

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सतपाल स्नेही | Satpal Snehi

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क्यूँ अपणे हाथों भाइयाँ का लहू बहावै सै
क्याँ ताहीं तू इतना एण्डीपणा दिखावै सै

जाण लिये तू एक दिन इसमै आप्पै फँस ज्यागा
जाल तू जुणसा औराँ ताही आज बिछावै सै

इस्या काम कर जो धरती पै नाम रहै तेरा
बेबाताँ की बाताँ मैं क्यूँ मगज खपावै सै

जिसनै राख्या बचा-बचा कै आन्धी-ओळाँ तै
उस घर मैं क्यूँ रै बेदर्दी आग लगावै सै

छैल गाभरू हो होकै इतना समझदार होकै
क्यूँ अपणे हांगे नै तू बेकार गँवावै सै 

हरियाली अर खुशहाली के इस हरियाणे मै
क्यँ छोरे ‘सतपाल’ दुखाँ के गीत सुणावै सै

सतपाल स्नेही
बहादुरगढ़-124507 (हरियाणा)

साभार - हरिगंधा

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