आपणा घर - रेनू शर्मा की हरियाणवी लघुकथा | Haryanvi Short Story
वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

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म्हारा हरियाणा संकलन

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‘‘आं री ताई आज तो तुं चांए चांए फिरै सै के बात सै।'' बूढ़ी ठेरी रामदेई तै दुकानां पै तै समान ल्यांदवा देखकै पंसारी बोल्या।

बूढ़ी रामदेई नै नजर का चश्मा ठीक कर्या अर बोली, ‘‘भाई के बताऊं मेरे भतीजे कै घणे सालां बाद छोरा होया सै। औठै जाणा सै तडक़ै जाऊँगी उसेकी तैयारी करूँ सूं।"

पंसारी खिझाण का मारया बोल्या-'अर ताई जे छोरी जैम जांदी फेर भी न्यूए चांए चांए फिरदी।'

रामदेई बोली-'क्यूंरे गाढण जोगे छोरी के रैत नै उठ कै खांवै सै वै भी घर का चांदणा हौवै सै। छोरियां बिना भी घर सूने हौवै सै। मनै तो छोरी की भी खुशी होंदी।' इतने मैं पड़ोस का रामदिया बोल्या-'ताई तनै तडक़े खातर गाड़ी की साई देई थी कित जावेगी इतनी तडक़ै?'

बूढ़ी रामदेई खुश हौकै बोली, 'भाई अपणे घरां जाऊँगी।'

रामदिया बोल्या- 'ताई तेरा ब्याह कितनी उम्र मैं होया था?'

रामदेई बोली-'भाई नौ साल की थी।'

'अर ईब कै साल की होगी?' रामदिया बोल्या।

'रे ऊत सैठ टपगी।'

'ताई नौ साल जडै रह कै आई उनै आपणा घर बतावै अर जडै पचास साल सारे होगे ओ तेरा घर कोनी?'

रामदेई बोली-'देखे भाई-राम बेटियां की आत्मां ए न्यारी बणावै सै, उसकी चाहे सारी उम्र लिकड जो पर पीहर का मोह कोणी छूटदा। वा तौ उसती आपणा ऐ घर कवै सै। भाई देखे दुनिया की तो कती मती मारी गई सै। जूणसे छोरियां नै कोख मैं मरवावैं सैं। भाई हम आठ बाहण सैं अर मेरै च्यार बेटी सैं। अर भाई मनै बेट्यां तै प्यारी लागैं सै। त्योहार बार इनतै ऐ सुथरे लागै सै। अर देखे भाई ताई रामदेई सहज दे सी बोली तेरे ताऊ कै चै मेरै पैर मैं मड़सा कांडा भी लैग जै छोरी भाझी आवैं सैं छोरियां बरगी तै अनमोल ऊलाद दुनियां मैं कोणी। छोरे जरूरी सैं छोरी भी घणी जरूरी सैं। आच्छया भाई बातां मैं घणा टेम लवै दिया था मणै मनै आपणे घर ले जाण खातर जोड़े जामे भी लाणे सै।'

ताई के जायां पाछै रामदिया पंसारी तै बोल्या भाई ताई की बात सोलह आने सच्ची सै। लुगाई कितनी भी उम्र की हो जो पीहर नै ऐ वा आपणा घर कवै सै?


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पत्नी श्री विजय शांडिल्य, मकान न. 321/2 रादौर (यमुनानगर)135133 हरियाणा

साभार - हरिगंधा, नवंबर-दिसंबर, 2012

 

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