मिली अंधेरे नै सै छूट | हरियाणवी ग़ज़ल | Haryanvi Ghazal by Risal Jangra
जो साहित्य केवल स्वप्नलोक की ओर ले जाये, वास्तविक जीवन को उपकृत करने में असमर्थ हो, वह नितांत महत्वहीन है। - (डॉ.) काशीप्रसाद जायसवाल।

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रिसाल जांगड़ा

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मिली अंधेरे नै सै छूट
रह्या उजाले नै यू लूट

उसका पक्कम सत्यानाश
पड़ग्यी सै जिस घर मैं फूट

मंदिर म्हं खडकावै टाल
बोल्लै सौ-सौ मण की झूट

घर का पूरा पाट्टै क्यूकर
जनमै रोज नया रंगरुट

बदमाशां के वारे न्यारे
रह्ये रात दिन चांदी कूट

उसकी मंजिल कोसों दूर
जिसका गया हौंसला छूट

'रिसाल' घूमती दिक्खै दुनिया
दारू की इक पी कै घूंट

 -  रिसाल जांगड़ा
    साभार - अक्षर ख़बर (फरवरी २००४)


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