या दुनिया | हरियाणवी कथा | Haryanvi Folk Tale
वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

Find Us On:

Hindi English

म्हारा हरियाणा संकलन

Click To download this content 

एक ब एक बूढ़ा सा माणस अर उसका छोरा दूसरे गाम जाण लागरे थे। सवारी वास्तै एक खच्चर ह था। दोनो खच्चर पै सवार होकै चाल पड़े। रास्ते मैं कुछ लोग देख कै बोल्ले, "रै माड़ा खच्चर अर दो-दो सवारी। हे राम, जानवर की जान की तो कोई कीमत नहीं समझदे लोग।"

बूढ़े नै सोच्चया छोरा थक ज्यागा सो छोरा खच्चर पै बैठ्या दिया, अर आप पैदल हो लिया। रस्तै मै फेर लोग मिले, बोल्ले, "देखो, रै छोरा के मजे तै सवारी लेण लगरया सै अर बूढ़ा बच्यारा मरण नै होरया सै ।"

छोरा शर्म मान तल्ले हो लिया। बूढ़ा खच्चर पै बठ्या दिया। फेर लोग मिले, "बूढ़ा के मजे तै सवारी लेण लगरया सै अर छोरा बच्यारा.......। उम्र खाए बेठ्या सै पर ......!

लोकलाज नै बूढ़ा बी उतर गया। दोनो पैदल चलण लाग गे।

थोड़ी देर मैं फेर लोग मिले, "देखो रै लोग्गो! खच्चर गेल्लों सै अर आप दोन जणे पैदल! "पागल सैं।" कोई बोल्या।

कुछ सोच कै बाप अपणे बेट्टे नै कहण लग्या, 'बेट्टा तैं अराम तै सवारी कर, बैठ जा!"

'...पर! बापू!"

बूढ़ा बोल्या, " रै बेट्टा, अराम तै बेठ जा। भोकण दे दुनियां नै। या दुनिया नी जीण दिया करदी बेशक जिस्तरां मरजी करले या तो बस भौकेंगें।

"इब कै हम दोनों खच्चर नै उठा कै चाल्लैंगे? अर फेर के या जीण दें?'

छोरा बाप की बात, अर दुनिया दोनों नै समझ गया था।

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी', न्यूज़ीलैंड

आभार- यह कहानी बचपन में पड़ोस में एक दाने भूनने वाले 'हरिया राम' नाम के बुजुर्ग सुनाया करते थे जहां हम मक्की और कभी चने के दाने भुनवाने जाया करते थे। हरिया राम अब नहीं रहे पर उनकी यह कहानी स्मृतियों में सदैव साथ है और यदाकदा इसका जिक्र होता रहता है।

Back
  
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 
 

Subscription

Contact Us


Name
Email
Comments