Mhara Haryana - Haryanvi literature, culture and language
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गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी जी लगता ना तेरे बिना मरदां बिना लुगाई सून्नी, सून्नी सै छॉत मँडेरे बिना मैं गेल चलुंगी ...
मैं तो मर ली तेरे बिना, मैं तो मर ली तेरे बिना, तेरी मेरी जोड़ी अलग पटै ना, तेरे बिना मेरी रैन कटै ना शाम रहै ना सबेरे बिना मैं तो मरली तेरे बिना - चन्दरलाल # हरियाणवी ग़ज़ल गायन लगभग न के बराबर कहा जा सकता है, इस क्षेत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के श्री अनूप लाठर ने अनुपम प्रयोग किया है। आप निम्न लिंक पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की एक छात्रा द्वारा किया हरियाणवी ग़ज़ल गायन सुन सकते हैं। कृपया अपनी टिप्पणी हमें अवश्य भेजें।
साभार - यू ट्यूब उपरोक्त रचना को यूं तो ग़ज़ल कहा गया है जिसमें संशय है किंतु इसकी प्रस्तुति पूर्णतया रागात्मक व लहज़ा ग़ज़ल का ही है। नि:संदेह श्री राठी का यह प्रयोग अपने आप में अनुपम है। इस तरह का लहज़ा हरियाणवी को एक नई दशा दे सकता है। |
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