Mhara Haryana - Haryanvi literature, culture and language
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Literature Under This Category | ||||
गोरी म्हारे गाम | कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi | ||||
गोरी म्हारे गाम की चाली छम-छम। गलियारा भी कांप गया मर गए हम।। आगरे का घाघरा गोड्या नै भेड़ै चण्डीगढ़ की चूनरी गालां नै छेड़ै जयपुर की जूतियां का पैरां पै जुलम गलियारा भी....................। बोरला बाजूबन्द हार सज रह्या हथनी-सी चाल पै नाड़ा बज रह्या बोल रहे बिछुए, दम मारो दम गलियारा भी...................। घुँघटे नै जो थोड़ा-थोड़ा सरकावै सब तिथियाँ का चन्द्रमा नजर आवै सारा घूँघट खोल दे तो साधु मांगै रम गलियारा............................। प्रीत के नशे में चाली डट-डटकै चालती परी की पोरी पोरी मटकै एटम भरे जोबन का फोड़ गई बम गलियारा भी.......................। टाबर सगले गाम के पीछै पड़ गे देखते ही युवका के होश उड़ गे बूढ़े-बूढ़े बैठ गए भर कै चिलम गलियारा भी.....................। कूदण लाग्या मन मेरा, बिंध गया तन लिक्खण बैठ्या खूबसूरती का वरणन कोरा कागज उड़ गया, टूट गी कलम गलियारा भी कांप गया, मर गए हम। |
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हरिहर की धरती हरियाणा - रथुनाथ प्रियदर्शी - म्हारा हरियाणा संकलन | ||||
सबका प्यारा, सब तैं न्यारा, 'हरिहर ' की धरती हरियाणा । तीरथ-मेले-धरोवरों का, धरम-धाम यो हरियाणा ।। टेक ।। | ||||
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दीवाली - सत्यदेव शर्मा 'हरियाणवी' - म्हारा हरियाणा संकलन | ||||
पत्नी नै अपनी अक्लबन्दी की मोहर मेरे दिल पै जमा दी और दीवाली आवण तै पहलम सामान की एक लम्बी लिस्ट मेरे हाथ में थमा दी। |
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क्यूँ अपणे हाथों भाइयाँ का लहू बहावै सै | हरियाणवी ग़ज़ल - सतपाल स्नेही | Satpal Snehi | ||||
क्यूँ अपणे हाथों भाइयाँ का लहू बहावै सै क्याँ ताहीं तू इतना एण्डीपणा दिखावै सै जाण लिये तू एक दिन इसमै आप्पै फँस ज्यागा जाल तू जुणसा औराँ ताही आज बिछावै सै इस्या काम कर जो धरती पै नाम रहै तेरा बेबाताँ की बाताँ मैं क्यूँ मगज खपावै सै जिसनै राख्या बचा-बचा कै आन्धी-ओळाँ तै उस घर मैं क्यूँ रै बेदर्दी आग लगावै सै छैल गाभरू हो होकै इतना समझदार होकै क्यूँ अपणे हांगे नै तू बेकार गँवावै सै हरियाली अर खुशहाली के इस हरियाणे मै क्यँ छोरे ‘सतपाल’ दुखाँ के गीत सुणावै सै सतपाल स्नेही बहादुरगढ़-124507 (हरियाणा) |
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एक बख़त था... - सत्यवीर नाहडिय़ा | ||||
एक बख़त था, गाम नै माणस, राम बताया करते। आपस म्हं था मेलजोल, सुख-दुख बतलाया करते। माड़ी करता कार कोई तो, सब धमकाया करते। ब्याह-ठीच्चे अर खेत-क्यार म्हं, हाथ बटाया करते। इब बैरी होग्ये भाई-भाई, रोवै न्यूं महतारी। पहलम आले गाम रहे ना, बात सुणो या म्हारी॥ एक बख़त था साझे म्हं सब, मौज उड़ाया करते। सुख-दुख के म्हां साझी रहकै, हाथ बटाया करते। घर-कुणबे का एक्का पहलम, न्यूं समझाया करते। खेत-क्यार अर ब्याह्-ठीच्चे पै आग्गै पाया करते। रल़मिल कै वै गाया करते-रंग चाव के गीत दिखे। इब कुणबे पाट्ये न्यारे-सारे, नहीं रह्यी वै रीत दिखे॥ एक बख़त म्हारी नानी-दादी, कथा सुणाया करती। बात के बत्तके कडक़े कुत्तके ठोक जंचाया करती। होंकारे भरते बालक-चीलक, ग्यान बढ़ाया करती। संस्कार की घुट्टी नित बातां म्हं प्याया करती। कहाणी म्हं सार सिखाया करती-ला छाती कै टाब्बर। इब नानी-दादी बण बैठ्ये ये टीवी अर कम्यूटर॥ एक बख़त था पीपल नै सब, सीस नवाया करते। तिरवेणी म्हं बड़-पीपल अर नीम लगाया करते। ऊठ सबेरै नित पीपल़ म्हं नीर चढ़ाया करते। हो पीपल-पूज्जा, लिछमी-पूज्जा बड़े बताया करते। गीता-ज्ञान सुणाया करते-जब पीपल़ बणे मुरारी। इब कलयुग म्हं पीपल़ पै भी चाल्लण लागी आरी॥ |
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दीवाळी - कवि नरसिंह | ||||
कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का - आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥ |
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मन डटदा कोन्या - म्हारा हरियाणा संकलन | ||||
मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा एक मन कहै मैं साइकल तो घुमाया करूं एक मन कहै मोटर कार मैं चलाया करूं रै मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा एक मन कहै मेरे पांच सात तो छोहरे हों एक मन कहै सोना चांदी भी भतेरे हों मन डटदा कोन्या डाटूं सूं रोज भतेरा |
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बता मेरे यार सुदामा रै - म्हारा हरियाणा संकलन | ||||
बता मेरे यार सुदामा रै, भाई घणे दिनां मै आया - 2 बाळक था रै जब आया करता, रोज़ खेल कै जाया करता - 2 |
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माटी का चूल्हा - जगबीर राठी | ||||
उसनै देख कै एक माँ का मन पसीज़ ग्या जब मॉटी का चूल्हा मींह कै म्हाँ भीज़ ग्या |
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भैंसों की मुख्य नस्लें - रामप्रसाद भारती - म्हारा हरियाणा संकलन | ||||
मुर्रा | ||||
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वो गाम पुराणे कडै़ गये - नरेन्द्र गुलिया | Narendra Gulia | ||||
वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये वो पहल्यां आली बात नहीं, सुखधाम पुराणे कडै़ गये वो गाम पुराणे कडै़ गये, वो गाम पुराणे कड़ै गये ! |
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हरियाणवी दोहे - श्याम सखा श्याम | Shyam Sakha Shyam | ||||
मनै बावली मनचली, कहवैं सारे लोग। प्रेम प्रीत का लग गया, जिब तै मन म्हँ रोग ।। |
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बाट | हरयाणवी गीत - श्रीकृष्ण गोतान मंजर | Shrikrishna Gotan Manjar | ||||
कोये ना कोये बात सै । मेरी मायड़ जी हुलसावै।। |
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हरियाणा | हरियाणवी गीत | कविता - श्रीकृष्ण गोतान मंजर | Shrikrishna Gotan Manjar | ||||
सब सै निराला हरियाणा दूध घी का सै खाणा॥ |
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हरयाणवी दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
मोबाइल प लगा रहै, दिनभर करै चैबोळ। काम कदे करता नहीं, सै बेट्टा बंगलोळ।। इतना सब कुछ लिक्ख गए,दादा लखमीचंद। 'रोहित' लिक्खू बोल के, बचा कूंण सा छंद ।। देसी घी का नाम तो, भूल गए इब लोग । इस पीढ़ी नै लागरे, पित्ज़ा, केक के रोग।। गामा मैं बी दिक्खे ना, कित्ते कोय चौपाळ। इक-दूजे के फाड़ते, दिक्खें सारे बाळ।। लाज-शरम की चिडीया, उड़गी बाब्बू दूर । वो भी तो लाचार सै, हम बी सै मजबूर ।। सारे एंडी पाक रे, कोई रया न घाट। बेटे अपने बाप की, करैं खड़ी इब खाट ।। |
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ओ मेरी महबूबा | हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi | ||||
ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा तू मन्नै ले डूबी, मैं तन्नै ले डूब्या। मैं समझ गया तनै हिरणी, फिर पीछा कर लिया तेरा, हाय करड़ाई का फेरा। तू निकली मगर शेरणी, तनै खून पी लिया मेरा। ओ मेरी महबूबा महबूबा तू कर री ही-हू-हा, मैं कर बै-बू-बा। कदे खेत में, कदे पणघट पै, तनै खूब दिखाये जलवे, गामां में हो गे बलवे। मेरे व्यर्थ में गोडे टूटे, जूतां के घिस गे तलवे। ओर मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा तू मेरे तै ऊबी, मैं तेरे तै ऊब्या। कोय हो जो तनै पकड़ कै, ब्याह मेरे तै करवा दे, म्हारी जोड़ी तुरत मिला दे। मेरी गुस्सा भरी जवानी, तनै पूरा मजा चखा दे। ओ मेरी महबूबा, महबूबा-महबूबा फिर लुटै तेरी नगरी और लुटै मेरा सूबा। ओ मेरी महबूबा.........................। |
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चोट इतनी | हरियाणवी ग़ज़ल - कंवल हरियाणवी | Kanwal Haryanvi | ||||
चोट इतनी दिल पै खाई सै मनै, दर्द की दुनिया बसाई सै मनै। |
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चाल-चलण के घटिया देखे | हरियाणवी ग़ज़ल - कंवल हरियाणवी | Kanwal Haryanvi | ||||
चाल-चलण के घटिया देखे बड़े-बड़े बड़बोल्ले लोग, भारी भरकम दिक्खण आले थे भित्तर तै पोल्ले लोग। |
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हरयाणे का छौरा देख - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
हरयाणे का छौरा देख लाम्बा, चौड़ा गौरा देख ...........हरयाणे का छौरा देख! |
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साजण तो परदेस बसै - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
साजण तो परदेस बसै मैं सुरखी, बिंदी के लाऊं सामण बी इब सुहावै ना, मैं झूला झूलण के जाऊं |
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आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल | हरियाणवी ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल लिकड़ चुकी सै कदकी रेल |
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आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल लिकड़ चुकी सै कदकी रेल |
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बाजरे की रोटी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
बाजरे की रोटी ना थ्यावै कदै साग हो गै परदेसी जणूं फूट्टे म्हारे भाग |
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दूध-दहीं हम मक्खण खांवैं - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
दूध-दहीं हम मक्खण खांवैं हरयाणे का नाम बणावैं ............................ हरयाणे का नाम बणावैं |
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फेर तो मैं सूं राजी... - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
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दोगाना युगलगीत | Haryanvi Duet Song - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
लाड सै, दुलार सै आँखां के मैं प्यार सै छोड़ मत जाइयै तू तों ही घर बार सै! .....लाड सै, दुलार सै आँखां के मैं प्यार सै!! |
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गेल चलुंगी - चन्दरलाल | ||||
गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी | ||||
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मिली अंधेरे नै सै छूट | हरियाणवी ग़ज़ल - रिसाल जांगड़ा | ||||
मिली अंधेरे नै सै छूट रह्या उजाले नै यू लूट |
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झूठा माणस मटक रह्या सै | हरियाणवी ग़ज़ल - रिसाल जांगड़ा | ||||
झूठा माणस मटक रह्या सै, सूली पै सच लटक रह्या सै । |
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चल हाल रै उठ कै चाल... - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा उडै चाहे धूल सै मंजल दूर नहीं पर सै घबराणा चल हाल रै उठ कै चाल बड़ी सै दूर रै जाणा |
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हुड्डा हो, चौटाला हो - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
हुड्डा हो, चौटाला हो कदै न घोटाळा हो हाँ, कदै न घोटाळा हो..... |
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तेरी कितणी फोटो स्टेट सै | हरियाणवी ग़ज़ल - विनोद मैहरा बेचैन | ||||
तेरी कितणी फोटो स्टेट सै इस धरती पै गिणा दे तू रहवे सै किस जगह ओये भगवान पर्दा उठा दे यो तेरा भगत तो तेरी छवि कई शक्ल में देखे सै किसा गडबड घोटाला सै तू यो मामला सुलझा दे बस इतणा ए कहूँगा साफ सुथरी महोब्बत करणीये दिल के दरवाजे पै कोए अडंगा पड़ा सै तो ठा दे मेरी बेईज्जती करके शायद उतर जावे कर्ज़ तेरा तैंने जितने भी अहसान करे सै महफ़िल में गा दे सर पैरा में धर के और हाथ जोडके रिक्वेस्ट सै जो तेरे बस का नही सै मैंने वो लाहरसा ऩा दे वो रोटी खाते टैम न्यू याद करया जणू पितर हो तकलीफ किसने ज्यादा सही मैंने तू इश्क बता दे साँस आखरी लेवेगा उस टाइम यो दोस्त बेचैन तैंने छोड़ जिसपे वजूद गिरवी सै स्यामी ल्या दे |
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लगा बुढेरा एक बताण - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy' | ||||
लगा बुढेरा एक बताण आपस मै ना करो दुकाण पडणा-लिखणा अच्छा हो सै पर माणस की सीख पछाण लगा बुढेरा एक बताण...... |
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मुर्रा नस्ल की भैंस | कविता - संदीप कंवल भुरटाना | ||||
म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै। मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। मुर्रा नस्ल की भैंस म्हारी बाल्टा दूध का ठोकै सै, म्हारे गाबरू इस दूध नै किलो-किलो झौके सै, खल-बिनौला गैल्या, खावै काजू-बदाम सै मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। ढाई लाख की झौटी बेच के कर दिया कमाल, गरीब किसान था भाइयो इब होग्या मालामाल, जमींदार खातर या भैंस, सोने की खान सैै। मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। पाणी का दूध बिकै शहर म्हं हालात माडे़ होरे सैं, समोसे बरगी छोरी सै औडे, सिगरेट बरगे छोरे सैं, घणे पतले होरे सैं वें, गोड्या म्हं उनके जान सै, मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। चलाके मोटर भैंस नुवांवा, भाई तारा कमाल सै, संदीप कंवल भुरटाणे आला, राखै देखभाल सै, म्हारी खारकी झोटी पै पूरे गाम नै मान सै। म्हारे हरियाणे की या आन-बान-शान सै। मुर्रा नस्ल की झोटी का जग म्हं नाम सै ।। |
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मन्नै छोड कै ना जाइए | कविता - संदीप कंवल भुरटाना | ||||
मन्नै छोड कै ना जाइए, मेरे रजकै लाड़ लड़ाइए, अर मन्नै इसी जगां ब्याइए, जड़ै क्याकैं का दुख ना हो। छिक के रोटी खाइए, अर मन्नै भी खुवाइए,, जो चाहवै वो ए पाइए, पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए, जड़ै क्याकैं का सुख ना हो। माँ तेरे पै ए आस सै, पक्का ए विश्वास सै, तू ए तो मेरी खास सै, यो खास काम करके दिखाइए। माँ की मैं दुलारी सुं, ब्होत ए घणी प्यारी सुं, दिल तैं भी सारी सुं, पर कदे दिल ना दुखाइए। बाबु का काम करणा, रूपए जमा करके धरणा, इन बिना कती ना सरणा, काम चला कै दिखाइए। गरीबी तै तनै लड़-लड़कै, रातां नै खेतां म्हं पड़-पड़कै, अपणे हक खातर अड़-अड़कै, बाबु ब्होत ए धन कमाइए, पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए जडै क्याएं का सुख ना हो। माँ-बाबु तामै मन्नै पालण आले, मेरे तो ताम आखर तक रूखाले, वे इबे मन्नै ना सै देखे भाले, कदे होज्या काच्ची उम्र म्हं चालै, 'संदीप भुरटाणे' आले मन नै समझाइए, पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए, जडै क्याएं का सुख ना हो। - संदीप कंवल भुरटाना |
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बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो | कविता - संदीप कंवल भुरटाना | ||||
बुढ़ापा बैरी आग्या इब यो, रही वा जकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। जवानी टेम यो खेत म्हं हाली, रहया था पूरे रंग म्हं, आंदी रोटी दोपहर कै म्हं, खाया ताई के बैठ संग म्ह, सूखा पेड़ की ढाला यो इब, रही वा लकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। बेटां नै घर तै काढ दिया, लेग्ये जमीन धोखे म्हं, हरा-भरा घर उजड़गा, बिन पाणी के सोके म्हं, करड़ा घाम गेर दिया रै, रहा वा इब झड़ कोन्या छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। आज का बख्त इतना करड़ा कर दिये लाचार तनै, बुढापा की मार इसी मारदी, कर दिये बीमार तनै, रंग रूप सब बदल दिया, रही वा धड कोन्या छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। कह संदीप कंवल भुरटाणे आला, बूढां नै ना सताईयो रै, अपणे मात-पिता की सेवा करियो, दूध ना लज्जाईयो रै धूजण लागै हाथ मेरे इब, रही वा पकड़ कोन्या। छाती तान के चाला करता, रही वा अकड़ कोन्या।। - संदीप कंवल भुरटाना |
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हरियाणा राज्य गीत - नरेश कुमार शर्मा | ||||
हेरै मिली नई-नई सौगात हुआ रोशन म्हारा हरियाणा । सारे हक रखे सर्वोपरि उन्नत हुआ किसान म्हारा । स्वास्थय की सोच निराली उत्तम है संस्कार म्हारा । इब हो लिया आत्मसात आया है समय सुहाणा । हेरै मिली नई-नई सौगात........ |
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लियो झलक देख हरियाणे की - नरेश कुमार शर्मा | ||||
राज्य गीत के माध्यम से लियो झलक देख हरियाणे की। नई-नई चली स्कीम योजना कोन्या बात बहकाणे की। नीयती नेक चला राखी सै राज्य के म्हा हुआ विकास। सूचना प्रौद्योगिकी के कारण चारों तरफ हुआ प्रकाश। स्वस्थ-स्वच्छ अभियान के जरिये गई श्यान बदल हरियाणे की। नई-नई चली स्कीम योजना................ |
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अलबेली छोरी - नरेश कुमार शर्मा | ||||
मै अलबेली छोरी मेरी मटकै पोरी-पोरी मैं मस्त छबीली नार। |टेक| मेरी पायल छन-छन छनकै। पग घुंघरू खन-खन खनकै। किसी उठै सै झनकार। मैं मस्त छबीली नार................... मैं आजाद फिरू सु। किसे तै नहीं डरू सु। चाहे हो कोए थानेदार। मैं मस्त छबीली नार.................. सारे गाम की करू घुमाई। करती अपणे मन की चाई। मै तो नाचू सरे बजार। मैं मस्त छबीली नार....................... मै तो जवान भूतनी। देशां की फिरू उतनी। मेरी चली सारे कै तकरार। मैं मस्त छबीली नार................... नरेश ध्यान मैं धरलु जिस पै। अपणा काबू करलु उस पै। उसकी नहीं बसावै पार। मैं मस्त छबीली नार................... |
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शर्म लाज कति तार बगायी - जितेंद्र दहिया | ||||
शर्म लाज कति तार बगायी या माहरे हरयाने मे किसी तरक्की आयी...! | ||||
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बचपन का टेम - जितेंद्र दहिया | ||||
बचपन का टेम याद आ गया कितने काच्चे काटया करते, आलस का कोए काम ना था भाजे भाजे हांड्या करते । माचिस के ताश बनाया करते कित कित त ठा के ल्याया करते मोर के चंदे ठान ताई 4 बजे उठ के भाज जाया करते । ठा के तख्ती टांग के बस्ता स्कूल मे हम जाया करते, स्कूल के टेम पे मीह बरस ज्या सारी हाना चाहया करते । गा के कविता सुनाके पहड़े पिटन त बच जाया करते, राह म एक जोहड़ पड़े था उड़े तख्ती पोत ल्याया करते । "राजा की रानी रुससे जा माहरी तख्ती सूखे जा" कहके फेर सुखाया करते , नयी किताब आते ए हम असपे जिलत चड़ाया करते । सारे साल उस कहण्या फेर ना कदे खोल लखाया करते , बोतल की खाते आइसक्रीम हम बालां के मुरमुरे खाया करते । घरा म सबके टीवी ना था पड़ोसिया के देखन जाया करते ज कोए हमने ना देखन दे फेर हेंडल गेर के आया करते । भरी दोफारी महस खोलके जोहड़ पे ले के जाया करते , बैठ के ऊपर या पकड़ पूछ ने हम भी बित्तर बड़ जाया करते । साँझ ने खेलते लुहकम लुहका कदे आती पाती खेलया करते, कदे चंदगी की कदे चंदरभान की डांटा न हम झेलया करते । |
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बचपन - विरेन सांवङिया | ||||
प्यारे थे बचपन के साथी एक तै बढकै एक हिमाती चिजै खाण नै सारे डाकी धोरै रूपली किसे कै नै पाती दैख कै बांदर फैंकते चिजै दिखा ठोसा फेर काढते खिजै कैट्ठे होकै घणे खेले खेल पकङ कै बुर्सट बना दी रेल गली म्हं खेले तै पकङम पकङाई प्लाट लुह्क गै तै लुह्कम छिपाई छुट्टी के दिन ना कदे भी न्हाये जोहङ पै जा कै घरघुल्ले बनाये ढूँढ कै माचिस बणादें तांश संग खेलते फिर मित्र खास मार किलकारी नाच्चे हम झङ म्हं मोरणी भी देखी ब्याई एक बङ म्हं कागज की नाव बणाया करदे बारीश के पाणी म्हं बहाया करदे बारीश होण तै पागे पिसे चिजै खा कै फेर लेगे जिसे बणाके पिल्लू खेली गोली हारते दिखै तै खा गे रोली गिट्टे, बिज्जो खेलां करै थी छोरी कोए थी श्याणी तै कोए घणी गौरी ओढ पहर वै गिरकाया करती झुका कै गर्दन शरमाया करती मैडम नै देख घणी ए डरती हर त्यौहार पै रह थी बरती जोहङ पै नहा कै आया करते बैठक म्हं तांश बजाया करते खेल खेल म्हं कर लेते लङाई प्यारे दोस्त पै खा लेते पिटाई सरकंडा के बणाये थे तुक्के गुलेल तै निशाना कोए ना चुक्के साथिया गैल गए जोहङ पै शर्त लगा ली थी पहलै मोङ पै बङ पै चढकै मारी ढाक मुध्धे पङकै फुङाली नाक कदे पजामा तै कदे पहरी पैंट फैसगी शिशी तै ला लिया सैंट क्लास म्ह बठै पकङ कोणा खा के डंडे फेर आव था रोणा पिछै बठकै कै स्याही फैकाणा टकले दोस्त का तबला बजाणा दोस्तों के संग करकै अंगघाई खूब मास्टर की नकल कढाई खेले खाये भई तीज सिन्धारे दो चार छोड कै सब देखे बनवारे नानी कै घर पै जाया करते खीर चुरमा खुब खाया करते बासी खाते थे खीचङी और दलिया माँ घाल्या करै थी निखङू का पलिया ईब ना रह रह्या यो टेम पुराणा दादी माँ का नित लोरीयाँ सुणाणा सांवङीया नै था याद दिलाणा बचपन बैरी नै ना मुङके आणा |
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नारी सौंदर्य - विरेन सांवङिया | ||||
कोमल बदनी, रात रजनी वा चालै चाल बच्छेरी के सी भेष दमकता, रूप चमकता ऊठै लहर लच्छेरी के सी रंग हरे मै गौरा गात जणू पङा दूब पै पाला मुखङा दमक दामनी सा जणू कर रा चाँद ऊजाला जोबन ऊमङै घटा की ढाला जणूँ पुष्प सुगंधी आला रूप हुस्न के लागै झोके व करै ज्यान का गाला चम-2 चम-2 चमके लागैं जैसे माता बैठी बेरी के सी कोमल बदनी, रात रजनी वा............ कदे चुबार तो कदे गलीयार फिरती भागी भागी दे कै झोल्ली मार कै बोल्ली वा छत पै आ गिरकागी घुम घाम कै ओली सोली मेरे स्याहमी आगी दो नैना के तीर चले जब हँस कै नै शरमागी होंठ रसमली गात मखमली जैसे फूलाँ आली ढेरी के सी कोमल बदनी, रात रजनी वा........... |
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