मंदीप कंवल भुरटाना
शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।

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मंदीप कंवल भुरटाना

मंदीप कंवल भुरटाना

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गया बख्त आवै कोन्या

गया बख्त आवै कोन्या, ना रहरे माणस श्याणे
पहल्म बरगा प्यार रहया ना, इब होरे दूर ठिकाणे॥

पहले जैसा कोन्या रहया, यार और व्यवहार कती
बीर-मर्द की कोन्या रही रै, घर महै ताबेदार कती
माणस माणस बैरी होरया, कोन्या बसै पार कती
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