पं लखमीचंद | पं लखमीचंद का जीवन परिचय | Pt Lakhami Chand Biography | Shakespeare of Haryana
उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

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पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

पंडित लख्मीचंद का जन्म गांव जांटी कलां (सोनीपत) के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। परिवार का निर्वाह बड़ी कठिनाई से होता था इसलिए बालक लखमी को पाठशाला भेजने का प्रश्न ही नही उठता। लखमी को घर के पशु चराने का काम सौंप दिया गया और वे एक पाळी का जीवन व्यतीत करने लगे।

अन्य पाळियों से कुछ लोक गीत सुन सुन कर बालक लखमी को भी कुछ पंक्तियाँ याद हो गई। पशुओं को चराते-चराते लखमी भी कुछ न कुछ गुनगुनाता रहता।

इधर पशु चरते रहते, उधर लखमी अपनी धुन में रहता। धीरे-धीरे लखमी के गायन को मान्यता मिलने लगी। कुछ भजनी और सांगी उसे अपने साथ ले जाने लगे। परिवार वाले भी उनके इस शौक से चिंतित होने लगे लेकिन लखमी अपने गायन में मस्त रहे।

एक बार गांव में कोई शादी थी और उस समय के प्रसिद्ध कवि और गायक मान सिंह का लखमी के गांव में आना हुआ। रातभर लखमी मंत्रमुग्ध हो मान सिंह के भजन सुनता रहा। लखमी उनसे इतना प्रभावित हुआ कि मन ही मन उसने उन्हें गुरु धारण कर लिया। तत्पश्चात् मान सिंह लखमी को संगीत की औपचारिक शिक्षा देने लगे। थोड़े ही समय में लखमी गायन कला में निपुण हो सूर्य की भांति चमकने लगे।

गायन में निपुणता प्राप्त करने के बाद लखमीचंद की अभिनय में रूचि पैदा हुई। उस समय में अभिनय और सांग इत्यादि को अच्छा नहीं माना जाता था। लखमी अपनी धुन के पक्के थे। अब लखमी मेहंदीपुर के श्रीचंद सांगी की सांग मण्डली में सम्मिलित हो गए। फिर बाद में अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए सोहन कुंडलवाला के साथ काम करने लगे।

कला निखारने हेतु लखमीचंद ने कई कलाकारों से सानिध्य रखा तथापि वे सदा मान सिंह को ही अपना गुरु मानते रहे।

एक बार किसी समारोह में सोहन कुंडल वाला नें मान सिंह के अपमान में कुछ शब्द कह दिए तो लखमीचंद ने उनके साथ काम करते रहना उचित न समझा।

उनके प्रमुख सांगो मे हैं: राजा भोज, चंदेर्किरण , हीर-राँझा , चापसिंह, नल-दमयंती, सत्यवान-सावित्री, मीराबाई, पद्मावत सम्मिलित हैं।

--रोहित कुमार 'हैप्पी' 
   म्हारा हरियाणा  

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पं लखमीचंद की रागणियां

रागनी एक कौरवी लोकगीत विधा है जो आज स्वतंत्र लोकगीत विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हरियाणा में मनोरंजन के लिए गाए जाने वाले गीतों में रागनी प्रमुख है। यहां रागनी एक स्वतंत्र व लोकप्रिय लोकगीत विधा के रूप में प्रसिद्ध है। हरियाणा में रागनी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं व सामान्य मनोरंजन हेतु रागनियां अहम् हैं। हरियाणा की रागनियों की चर्चा हो तो पं लखमीचंद का मान सर्वोपरि लिया जाता है। प्रस्तुत हैं पं लखमीचंद की रागनिया।

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जीवन की रेल

हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥टेक॥

भर टी-टी का भेष रेल में बैठ वे कुफिया काल गये -
बंद हो-गी रफ्तार चलण तैं, पुर्जे सारे हाल गये ।
पांच ठगां नै जेब कतर ली, डूब-डूब धन-माल गये -
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