जन्म-मरण | Haryanvi Ragani by Pt. Lakhmi Chand
शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।

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जन्म-मरण | रागणी (साहित्य) 
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Author:पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए ।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥टेक॥

बहुत सी मां का दूध पिया पर आज म्हारै याद नहीं -
बहुत से भाई-बहन हुए, पर एक अंक दर याद नही ।
बहुत सी संतान पैदा की, पर गए उनकी मर्याद नहीं -
बहुत पिताओं से पैदा हुए, पर उनका घर भी याद नहीं ॥1॥

शुभ-अशुभ कर्म करे जग में, स्वर्ग-नरक कई बार गए ।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥

कहीं लिपटे रहे जेर में अपने कर्म करीने से -
कहीं अंडों में बंद रहे कहीं पैदा हुए पसीने से ।
कहीं डूबे रहे जल में, कहीं उम्र कटी जल पीने से -
फिर भी कर्म हाथ नहीं आया, मौत भली इस जीने से ॥2॥

कभी आर और कभी पार, डूब फिर से मंझधार गए ।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥

कभी तो मूल फूल में रम-ग्या, कभी हर्ष का स्योग लिया -
कभी निर्बलता कभी प्रबलता, कभी रोगी बण-कै रोग लिया ।
कभी नृपत कभी छत्रधारी, कभी जोगी बण-कै जोग लिया -
भोग भोगने आये थे, उन भोगों ने हमको भोग लिया ॥3॥

बड़े-बड़े योगी इस दुनियां में सोच-समझ सिर मार गए ।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥

आशा, तृष्णा और ईर्ष्या होनी चाहियें रस-रस में -
वो तो बस में हुई नहीं, हम हो गए उनके यश में ।
न्यूं सोचूं था काम-क्रोध नै मार गिरा दूं गर्दिश में -
काम-क्रोध तै मरे नहीं, हम हो गए उनके बस में ॥4॥

इतनी कहै-कै लखमीचंद भी मरे नहीं, दड़ मार गए ।
नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥

- पं लखमीचन्द

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