लाख-चौरासी खतम हुई बीत कल्प-युग चार गए । नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥टेक॥
बहुत सी मां का दूध पिया पर आज म्हारै याद नहीं - बहुत से भाई-बहन हुए, पर एक अंक दर याद नही । बहुत सी संतान पैदा की, पर गए उनकी मर्याद नहीं - बहुत पिताओं से पैदा हुए, पर उनका घर भी याद नहीं ॥1॥
शुभ-अशुभ कर्म करे जग में, स्वर्ग-नरक कई बार गए । नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥
कहीं लिपटे रहे जेर में अपने कर्म करीने से - कहीं अंडों में बंद रहे कहीं पैदा हुए पसीने से । कहीं डूबे रहे जल में, कहीं उम्र कटी जल पीने से - फिर भी कर्म हाथ नहीं आया, मौत भली इस जीने से ॥2॥
कभी आर और कभी पार, डूब फिर से मंझधार गए । नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥
कभी तो मूल फूल में रम-ग्या, कभी हर्ष का स्योग लिया - कभी निर्बलता कभी प्रबलता, कभी रोगी बण-कै रोग लिया । कभी नृपत कभी छत्रधारी, कभी जोगी बण-कै जोग लिया - भोग भोगने आये थे, उन भोगों ने हमको भोग लिया ॥3॥
बड़े-बड़े योगी इस दुनियां में सोच-समझ सिर मार गए । नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥
आशा, तृष्णा और ईर्ष्या होनी चाहियें रस-रस में - वो तो बस में हुई नहीं, हम हो गए उनके यश में । न्यूं सोचूं था काम-क्रोध नै मार गिरा दूं गर्दिश में - काम-क्रोध तै मरे नहीं, हम हो गए उनके बस में ॥4॥
इतनी कहै-कै लखमीचंद भी मरे नहीं, दड़ मार गए । नाक में दम आ लिया, हम मरते-मरते हार गए ॥
- पं लखमीचन्द |