चोट इतनी | हरियाणवी ग़ज़ल | Haryanvi Ghazal by Kanwal Haryanvi
शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।

Find Us On:

Hindi English
चोट इतनी | हरियाणवी ग़ज़ल (काव्य) 
Click To download this content    
Author:कंवल हरियाणवी | Kanwal Haryanvi

चोट इतनी दिल पै खाई सै मनै,
दर्द की दुनिया बसाई सै मनै।

भूल गया मैं अपने आप्पे नै कती,
याद उसकी जिब तै आई सै मनै।

टूटणा बेसक पड्या सै बार-बार,
अपणी बिगड़ी खुद बणाई सै मनै।

फूल-सा दिक्खै था पथरीला बदन,
चोट न्यूं भी दिल पै खाई सै मनै।

सींच कै अपणै लहू तै दोस्तो,
प्यार की बगिया सजाई सै मनै।

त्याग की ज्वाला मैं तप कै रैत-दिन,
बूंद भर नेक्की कमाई सै मनै।

मतलबी लोग्गां का जमघट सै 'कंवल'
सारी दुनिया आजमाई सै मनै।


- कंवल हरियाणवी [म्हारा हरियाणा संकलन]

साभार - यात्रा शब्दों की
साहित्य सभा कैथल

Haryanvi Ghazal by Kanwal Haryanvi

Previous Page  | Index Page  |    Next Page
 
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 
 

Subscription

Contact Us


Name
Email
Comments