चोट इतनी दिल पै खाई सै मनै, दर्द की दुनिया बसाई सै मनै।
भूल गया मैं अपने आप्पे नै कती, याद उसकी जिब तै आई सै मनै।
टूटणा बेसक पड्या सै बार-बार, अपणी बिगड़ी खुद बणाई सै मनै।
फूल-सा दिक्खै था पथरीला बदन, चोट न्यूं भी दिल पै खाई सै मनै।
सींच कै अपणै लहू तै दोस्तो, प्यार की बगिया सजाई सै मनै।
त्याग की ज्वाला मैं तप कै रैत-दिन, बूंद भर नेक्की कमाई सै मनै।
मतलबी लोग्गां का जमघट सै 'कंवल' सारी दुनिया आजमाई सै मनै।
- कंवल हरियाणवी [म्हारा हरियाणा संकलन]
साभार - यात्रा शब्दों की साहित्य सभा कैथल
Haryanvi Ghazal by Kanwal Haryanvi
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