मेरा सादा गाम | विपिन चौधरी की हरियाणवी कविता
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मेरा सादा गाम (काव्य) 
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Author:विपिन चौधरी

म्हारी बुग्गी गाड्डी के पहिये लोहे के सैं
जमां चपटे बिना हवा के
जूए कै सतीं जुड रहे सैं
मण हामी इसे मह बैठ
उरै ताईं पहुँच लिए

रेजै का पहरा करे स म्हारा कुर्ता
अर बां उपराण सांम्हीं राख्या करां,
थोड़ी - थोड़ी हांण म्ह समाहीं जाया करां
इस झोटा बुग्गी तैं रेत भोत ऊडे सै

अर फेर ये म्हारी ढाल के फिड्डे लीतर सैं
बस इन नैं पायां मैं ऊलझा कीं हाम चाल्या करा,
इसकै आगे टाँकी लाग रही सैं अर पाछे तैं फीडी कर राखी सैं.
मण ईब तो गर्मियाँ के दिन सैं
पायां म्ह कीमे कोनी, तो भी कोई बात कोणी
घणी बार तो हामीं ऊघाणे पाईं हांडी जायां करां सां
जद पाट रहे जूते समरणे दे राखे होंदे

सारी हाण थावर नैं शहर जाया करूं सू
अर ओड़े वा भी अपणई काक्कै सतीं आया करै,
शहर मह हामीं बुग्गी की छायाँ मैं बैठ जाया करां
हामीं दोनों अर मेरा बुग्गी आला झोटा

इस पुरानी बुग्गी म्ह बैठ कीं घरीं उलटे आ लिए
राह मैं सड्क के घण्खरे लट्टू फूट गये
अर मेरी बुग्गी कै कोये भोंपू भी कोनी

घरीं ऊलटे आये पाछै
थोड़ी हाण पादरा होये पाछे-
फेर ऊंट सतीं खेत मैं जाणा सै
ऊंट भी मडी बार हरे म्ह मुंह मार आवैगा

खेत म्ह थोड़ी हाण हाल बाउूंगा
थोड़ा जोटा मार कीं टीक्क्ड़ पाडूंगा
फेर बणी तैं पाणी ल्याउूंगा
ऊंट नैं प्याऊँगा
अर जोहड़ी म्ह गोता मारूंगा
गाम म्ह रहण का यो ऐ तरीका सै

उरे कोए भी अमीर कोनी
कोये भाजा- दौड़ी कोनी
हामीं धरती के मजे ले-ले कीं चाल्या करां सां
सांझ नैं मूँज की खरोड़ी खाट पर
हुक्का पींदीं हाण
श्यामीं दिखै स पूंज मारदी,
अर जुगाली करदी भैंस,
ठाण मैं लोट मारदा ऊंट,
अर पछंडे मारदा बाछड़ा
इस तैं बढीया किमें नजारा कोनी
सैं -सैं करदी काली रात नैं

कदे-कदे शहर के लोगाँ पर दया आवै सै
जिणनै कदे गोबर तैं लिबड़े ठाण मैं
बाल्टी भर दूध कोनी काड्या
वे तो ठाण कै धोरै कै भी कोनी लिकड़ सकें
फेर नीकडू दूध किसा

चांदणी रात म्ह हाल का जोतणा
ठाले बखतां मह मूँज कूटणा,
बाण बाटणा,
बटेऊ कुहाण का मज़ा ए न्यारा सै गामा म्ह

मैं किते और नहीं रहणा चाहँदा
अगले जन्म मैं राम मनै यो ए गाम दिए

इसे गाम पाणे इब बहोत मुश्कल सैं
सारे शहर ऐ शहर होगे
मनै तो बस मेरा गाम ऐ फेर अर फेर चाहिये सै
फेर अर फेर चाहिये सै
फेर अर फेर चाहिये सै

-विपिन चौधरी
 ईमेल: vipin.choudhary7@gmail.com

 

 

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