हरियाणे की कहाणी सुणल्यो.. | Ragni by Pt Mange Ram
वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

Find Us On:

Hindi English
सुणों कहाणी हरियाणे की (साहित्य) 
Click To download this content    
Author:पं मांगे राम

हरियाणे की कहाणी सुणल्यो दो सौ साल की।
कई किस्म की हवा चालगी नई चाल की ।

एक ढोलकिया एक सारंगिया खड़े रहैं थे
एक जनाना एक मर्दाना दो अड़े रहैं थे
पन्दरा-सोलहा कूंगर जड़कै जुड़े रहैं थे
गली और गितवाडां के म्हं बड़े रहें थे
सब तै पहलम या चतराई किशनलाल की ।

एक सौ सत्तर साल बाद फेर दीपचन्द होग्या
साजिन्दे तो बिठा दिये घोड़े का नाच बन्द होग्या
नीच्चै काला दामण ऊपर लाल कन्ध होग्या
चमोले नै भूलग्ये न्यूं न्यारा छंद होग्या
तीन काफिये गाए या बरणी रंगत हाल की ।

हरदेवा दुलीचंद चितरु भरतु एक बाजे नाई
घाघरी तै उन्हनै भी पहरी आंगी छुटवाई
तीन काफिये छोढ़ इकहरी रागनी गाई
उन्हतैं पाच्छै लखमीचन्द नै डोली बरसाई।
बातां उपर कलम तोड़ग्या आज-काल्ह की।

मांगेराम पाणची आला मन म्हं करै विचार
घाघरी के मारे मरगे मूरख मूढ़ गवार
शीश पै दुपट्टा, जम्फर पाह्यां म्हं सलवार
ईबतैं आगै देख लियो के चौथा चलै त्योहार
ज्यब छोरा पहरै घाघरी किसी बात कमाल की।
हरियाणे की कहाणी सुनल्यो दो सौ साल की।।

- पं मांगेराम

 

Previous Page  | Index Page
 
 
Post Comment
 
Name:
Email:
Content:
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 
 

Subscription

Contact Us


Name
Email
Comments