जीवन की रेल | पं० लखमीचंद की रागणी
शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।

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जीवन की रेल  (साहित्य) 
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Author:पं लखमीचंद | Pt Lakhami Chand

हो-ग्या इंजन फेल चालण तै, घंटे बंद, घडी रहगी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥टेक॥

भर टी-टी का भेष रेल में बैठ वे कुफिया काल गये -
बंद हो-गी रफ्तार चलण तैं, पुर्जे सारे हाल गये ।
पांच ठगां नै जेब कतर ली, डूब-डूब धन-माल गये -
बानवें करोड़ मुसाफिर थे, वे अपना सफर संभाल गये ॥1॥

उठ-उठ कै चले गए, सब खाली सीट पड़ी रहगी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रहगी ॥

टी-टी, गार्ड और ड्राइवर अपनी ड्यूटी त्याग गए -
जळ-ग्या सारा तेल खतम हो, कोयला पाणी आग गए ।
पंखा फिरणा बंद हो-ग्या, बुझ लट्टू गैस चिराग गए -
पच्चीस पंच रेल मैं ढूंढण एक नै एक लाग गए ॥2॥

वे भी डर तैं भाग गए, कोए झांखी खुली भिड़ी रहगी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥

कल-पुर्जे सब जाम हुए भई, टूटी कै कोए बूटी ना -
बहत्तर गाडी खड़ी लाइन मैं, कील-कुहाड़ी टूटी ना ।
तीन-सौ-साठ लाकडी लागी, अलग हुई कोई फूटी ना -
एक शख्स बिन रेल तेरी की, पाई तक भी ऊठी ना ॥3॥

एक चीज तेरी टूटी ना, सब ठौड़-की-ठौड़ जुड़ी रह-गी ।
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रहगी ॥

भरी पाप की रेल अड़ी तेरी पर्वत पहाड़ पाळ आगै -
धर्म-लाइन गई टूट तेरी नदिया नहर खाळ आगै ।
चमन चिमनी का लैंप बुझ-ग्या आंधी हवा बाळ आगै -
किन्डम हो गई रेल तेरी जंक्शन जगत जाळ आगै ॥4॥

कहै लखमीचंद काळ आगै बता किसकी आण अड़ी रहैगी ?
छोड़ ड्राइवर चल्या गया, टेशन पै रेल खड़ी रह-गी ॥

- पं० लखमीचंद

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