हरियाणवी ग़ज़लें | Haryanvi Ghazals

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हरियाणवी ग़ज़लें

 
 

एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है जो संक्षिप्‍त में इस प्रकार हैं - ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में हैं। यहाँ यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है।

ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

यद्यपि ग़ज़ल हिंदी में अपना स्थान स्थापित कर चुकी है तथापि हरियाणवी में यह विधा बहुत पुरानी नहीं है। हरियाणवी काव्य में हरियाणवी ग़ज़ल का प्रयोग शायद सबसे नया प्रयोग कहा जा सकता है।

 
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क्यूँ अपणे हाथों भाइयाँ का लहू बहावै सै | हरियाणवी ग़ज़ल  - सतपाल स्नेही | Satpal Snehi
क्यूँ अपणे हाथों भाइयाँ का लहू बहावै सै
क्याँ ताहीं तू इतना एण्डीपणा दिखावै सै

जाण लिये तू एक दिन इसमै आप्पै फँस ज्यागा
जाल तू जुणसा औराँ ताही आज बिछावै सै

इस्या काम कर जो धरती पै नाम रहै तेरा
बेबाताँ की बाताँ मैं क्यूँ मगज खपावै सै

जिसनै राख्या बचा-बचा कै आन्धी-ओळाँ तै
उस घर मैं क्यूँ रै बेदर्दी आग लगावै सै

छैल गाभरू हो होकै इतना समझदार होकै
क्यूँ अपणे हांगे नै तू बेकार गँवावै सै 

हरियाली अर खुशहाली के इस हरियाणे मै
क्यँ छोरे ‘सतपाल’ दुखाँ के गीत सुणावै सै

सतपाल स्नेही
बहादुरगढ़-124507 (हरियाणा)

 
चोट इतनी | हरियाणवी ग़ज़ल  - कंवल हरियाणवी | Kanwal Haryanvi
चोट इतनी दिल पै खाई सै मनै,
दर्द की दुनिया बसाई सै मनै।

 
चाल-चलण के घटिया देखे | हरियाणवी ग़ज़ल  - कंवल हरियाणवी | Kanwal Haryanvi
चाल-चलण के घटिया देखे बड़े-बड़े बड़बोल्ले लोग,
भारी भरकम दिक्खण आले थे भित्तर तै पोल्ले लोग।

 
आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल | हरियाणवी ग़ज़ल  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | Rohit Kumar 'Happy'
आग्या मिल गय्या तन्नैं बेल
लिकड़ चुकी सै कदकी रेल

 
गेल चलुंगी  -  चन्दरलाल
गेल चलुंगी, गेल चलुंगी, गेल चलुंगी

 
मिली अंधेरे नै सै छूट | हरियाणवी ग़ज़ल  - रिसाल जांगड़ा
मिली अंधेरे नै सै छूट
रह्या उजाले नै यू लूट

 
झूठा माणस मटक रह्या सै | हरियाणवी ग़ज़ल  - रिसाल जांगड़ा
झूठा माणस मटक रह्या सै,
सूली पै सच लटक रह्या सै ।

 
तेरी कितणी फोटो स्टेट सै | हरियाणवी ग़ज़ल  - विनोद मैहरा बेचैन
तेरी कितणी फोटो स्टेट सै इस धरती पै गिणा दे
तू रहवे सै किस जगह ओये भगवान पर्दा उठा दे

यो तेरा भगत तो तेरी छवि कई शक्ल में देखे सै
किसा गडबड घोटाला सै तू यो मामला सुलझा दे

बस इतणा ए कहूँगा साफ सुथरी महोब्बत करणीये
दिल के दरवाजे पै कोए अडंगा पड़ा सै तो ठा दे

मेरी बेईज्जती करके शायद उतर जावे कर्ज़ तेरा
तैंने जितने भी अहसान करे सै महफ़िल में गा दे

सर पैरा में धर के और हाथ जोडके रिक्वेस्ट सै
जो तेरे बस का नही सै मैंने वो लाहरसा ऩा दे

वो रोटी खाते टैम न्यू याद करया जणू पितर हो
तकलीफ किसने ज्यादा सही मैंने तू इश्क बता दे

साँस आखरी लेवेगा उस टाइम यो दोस्त बेचैन
तैंने छोड़ जिसपे वजूद गिरवी सै स्यामी ल्या दे

 

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