विरेन सांवङिया | Sanwariya Viren
जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

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विरेन सांवङिया

विरेन सांवङिया भिवानी से संबंध रखते हैं व हरियाणवी में लेखन करते हैं।

 

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बचपन

प्यारे थे बचपन के साथी
एक तै बढकै एक हिमाती
चिजै खाण नै सारे डाकी
धोरै रूपली किसे कै नै पाती

दैख कै बांदर फैंकते चिजै
दिखा ठोसा फेर काढते खिजै
कैट्ठे होकै घणे खेले खेल
पकङ कै बुर्सट बना दी रेल

गली म्हं खेले तै पकङम पकङाई
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नारी सौंदर्य

कोमल बदनी, रात रजनी वा चालै चाल बच्छेरी के सी
भेष दमकता, रूप चमकता ऊठै लहर लच्छेरी के सी
रंग हरे मै गौरा गात जणू पङा दूब पै पाला
मुखङा दमक दामनी सा जणू कर रा चाँद ऊजाला
जोबन ऊमङै घटा की ढाला जणूँ पुष्प सुगंधी आला
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