जितेंद्र दहिया
अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

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शर्म लाज कति तार बगायी

शर्म लाज कति तार बगायी या माहरे हरयाने मे किसी तरक्की आयी...!

कट्ठे रह के कोए राजी कोनया ब्याह करते ए न्यारे पाटे हैं,
माँ बाप की कोए सेवा नहीं करता सारे राखन त नाटे है ।
भाना की कोए कदर रही ना, साली ए प्यारी लागे है ,
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बचपन का टेम

बचपन का टेम याद आ गया कितने काच्चे काटया करते,
आलस का कोए काम ना था भाजे भाजे हांड्या करते ।

माचिस के ताश बनाया करते कित कित त ठा के ल्याया करते
मोर के चंदे ठान ताई 4 बजे उठ के भाज जाया करते ।

ठा के तख्ती टांग के बस्ता स्कूल मे हम जाया करते,
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