श्याम सखा श्याम का जीवन परिचय | Shyam Sakha Shyam Biography Hindi
अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

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श्याम सखा श्याम | Shyam Sakha Shyam

आपका जन्म 1 अप्रैल 1948 हुआ। आप रोहतक के गांव सांघी से संबंध रखते हैं।

आप एम.बी.बी.एस, एफ़.सी.जी.पी. हैं और एक सफल चिकित्सक हैं। आपने 1970 में गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, रोहतक से एम.बी.बी.एस और तदोपरांत एफ़.सी.जी.पी. की फेलोशिप ली।

आपकी बाल्यकाल से लेखन में रुचि थी। आपके शिक्षक श्री दयालचंद मिगलानी ने आपकी प्रतिभा को पहचाना और आपको लिखने के लिए प्रेरित किया। आपने 11 वर्ष की अल्पायु में लेखन आरम्भ किया। आप हरियाणवी के अतिरिक्त हिंदी, पंजाबी व अंग्रेज़ी में कहानी, उपन्यास, गीत, गज़ल व दोहे इत्यादि अनेक विधाओं में लेखन करते हैं।

आपकी दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

आपको हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा 2007 में 'पं लखमीचंद पुरस्कार' से अलंकृतकिया गया। हरियाणा में यह पुरस्कार लोक साहित्य व लोक कला के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। इसके अतिरिक्त विभिन्न अकादमियों द्वारा अनेक पुस्तकें जिनमें - अकथ, घणी गई थोड़ी रही (हरियाणवी कथा संग्रह), समझणिये की मर (हरियाणवी उपन्यास), कोई फायदा नहीं (हिन्दी उपन्यास), इक सी बेला (पंजाबी कहानी संग्रह) सम्मानित।

 

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हरियाणवी दोहे

मनै बावली मनचली,  कहवैं सारे लोग।
प्रेम प्रीत का लग गया, जिब तै मन म्हँ रोग ।।

बीर मरद में हो रह्यी, बस एकै तकरार।
मालिक घर का कूण सै, जिब तनखा इकसार ।।

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